War of 1965 And Tanot Mata

Discover the fascinating history of Shri Tanot Rai Mata Mandir and its role in protecting Indian soldiers during the 1965 Indo-Pakistani War.

तनोट का युद्ध: 17 नबम्वर -19 नबम्वर 1965

सितम्बर सन् 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले ही शत्रु (पाक) ने पूर्व में किशनगढ़ से 78 किलोमीटर बुईली तक पश्चिम में सादेवाला से शहगढ़ व उत्तर में अछरीटीबा 06 किलोमीटर तक पर अधिकार कर लिया था। जब तनोट पर आक्रमण हुआ उस समय वह शत्रु से तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि शत्रु द्वारा तनोट पर अधिकार कर लिया जाता तो वह सरकारी रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के क्षेत्र पर अपने कब्जे का दावा कर सकता था। इस प्रकार तनोट पर अधिकार का प्रश्न भारत व पाक दोनों के लिए बहुत महत्व का था।

तनोट क्षेत्र को कब्जे में लेने के लिए शत्रु ने भारी सेना, 28 सपोर्टिंग गनों, मोटर्रस और टी-16 वैपन केरियरस के साथ 17 नबम्वर 1965 को तनोट पर आक्रमण किया शत्रु ने तनोट जाने वाले मार्ग को घंटियाली के पास एम्बूश, एन्टी-परसनल और एण्टी-टैंक माइन्स बिछाकर काट दिया ऐसे समय में तनोट की रक्षा के लिए मेजर (अब ले. कर्नल) जय सिंह एस.एम. की कमाण्ड में 13 गरनेडियर्स के केवल एक स्क्वाइन व 04 आर.ए.सी. (अब 13 सीमा सुरक्षा दल) की दो कम्पनियां ही थी। दुश्मन ने अलग-अलग तीन तरह से तीन आक्रमण शुरू किए।

सभी हमले नाकाम कर दिए गए जिसमें दुश्मन के तकरीबन 400 आदमी मरे और घायल हुए। इस प्रकार तनोट के इस कड़े मुकाबले में 13 ग्रेनेडियर व 13 सीमा सुरक्षा दल की मिली जुली ताकत ने गंगा रिसाला की इस पुरानी कहावत को एक बार दुबारा पूरा कर दिखाया कि: धुंआ अम्बर ढाकियो बै-रूठा राठोर: (अर्थात) जब राठोर गुस्से में युद्ध में जोश में होते हैं तो सारा आकाश धुंआ से भर जाता है। तनोट के रक्षकों के पास कम फायर पावर थी। सैनिकों की तादाद भी कम थी परन्तु हमारे जवानों की बहादुरी व साहस के आगे ये कठिनाइयां खड़ी नहीं रह सकी।

तनोट का युद्ध स्थान लम्बे अर्से तक राजपूतों की बहादुरी की गाथा के गीत गाता रहेगा। भले हो वह तनोट का पहला, दूसरा या तीसरा युद्ध हो। विजय देवी ने राजपूतों के सिर पर जीत और अमर वरदान का मुकुट रखा है तनोट पर विजय के समाचारों की घोषणा आकाशवाणी द्वारा की गयी जिसे पूरे देश में उत्साह के साथ सुना गया। देश के समाचार पत्रों ने तनोट के मुकाबले को पहले पेज पर मोटे लाइनों में छाप कर विजय के गौरवमान किया।

13 ग्रेनेडियर्स व 04 आर.ए.सी. (अब 13 सीमा सुरक्षा दल) के जवानों ने तनोट में वेजोड़ हिम्मत और बहादुरी दिखाकर तनोट को पाक के कब्जे में जाने से बचाया। उनकी इस बहादुरी व हिम्मत ने 13 ग्रेनेडियर्स (गंगा रिसाला) और 13 सीमा सुरक्षा दल के इतिहास में एक नए अध्याय को जोड़ा है। दुश्मन देहली पर अधिकार करने के बाद भारत से संधि करने का सपना रखता था। जवानो की बहादुरी ने उसकी ढिंग को झुठलाकर उसे (दुश्मन) वापिस उलटा मार भगाया।

13 ग्रेनेडियर्स (गंगा-जैसलमेर) ने इस लड़ाई की विजय की खुशी में एक विशेष (स्पेशल) बटालियन ऑडर प्रकाशित किया वह इस प्रकार है। ‘‘ तनोट राजस्थान सीमा का सामरिक कौशल की दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। 17 नबम्वर एवं 18 नबम्बर 1965 को इस पर दुश्मन ने भारी हमला किया। पीछे से रास्ते काट दिए गए और आठ कम्पनियों से तीन दिशाओं से आक्रमण किया गया यह स्थान 48 घंटों तक भारी तोपखाने के बम्बों के अधीनस्थ रहा।

मेजर जय सिंह (भैलासर) जो तनोट इलाके के कमाण्डर थे। अपनी बी. स्क्वाड्रन और दो आर.ए.सी. कम्पनियों के साथ अत्यन्त वीरता के साथ लड़ते रहे। शत्रु के तीनो आक्रमणों मेें दुश्मन के बहुत से सैनिकों को मारकार नाकाम कर दिया गया। इस लड़ाई का महत्व (Importance) हमारे सभी समचार पत्रों के शीर्षकों (Headline News) से स्पष्ट है। मेजर जयसिंह द्वारा उन भयंकर परिस्थितियों में तनोट की रक्षा के लिए प्रदर्शित नेतृत्व (Leadership) एवं दृढ़ता (Determination) से दुश्मन का मुकाबला करने का एक बहुत ऊँचे दर्जे का नमूना है।

इसी प्रकार उनके जे.सी.ओज., एन.सी.ओज. और सैनिकों ने निरन्तर दो दिनों तक वीरता पूर्वक मुकाबला किया और जिस प्रकार यूनिट का सम्मान बढ़ाया शाबासी के लायक है। दिवंगत मेजर पूरन सिंह, सी.स्कवाड्रन एवं कैप्टन शेर सिंह ए. एवं बी. स्कवाड्रन की दो ट्रपों सहित सादेवाला से तनोट तक उनकी सहायता करते रहे। उन्होंने वीरता से शत्रु स्थानों को साफ कर दिया जो तनोट पहुंचने के पूर्व भारी मुकाबले में फंसे थे और समय पर चौकी पर पहुंच कर बहुत सहायता की। इसी प्रकार दुश्मन के अन्य प्रयासों के लिए भारी बाधा का कार्य किया ‘‘ जय हिन्द।।

‘‘ जय हिन्द “